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मांदी का ज्योतिषीय अध्ययन भाग– 1
By
उपेन्द्रसिंहजी बाबूसिंहजी भदौरिया
सहायक लेखिका : भाविनी जोशी
SA Volunteer: Vinayak Bhatt
मांदी की उत्पत्ति एवं स्वरूप :- मांदी शनि पुत्र है। जैसा कि पुराणों में बताया गया है, मांदी की उत्पत्ति एक मिथक के रूप में है। महर्षि नारद के कारण बृहस्पति और शनि के बीच विवाद हुआ। इस विवाद के कारण दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में घायल हुए शनि का काफी खून बहा था। उस खून में से मांदी की उत्पति हुई। मांदी जिस रूप में उत्पन्न हुआ वह अत्यंत भयानक था। मांदी को एक लंबा सर्पाकार शरीर, पांच मुंह वाला चेहरा, नीला रंग, लाल आँखे और बड़े दांतों के साथ एक राक्षसी रूप में वर्णित किया गया है। शनिदेव ने अग्निमय नेत्रों, बिजली के समान तेज, अत्यंत कर्कश वाणी और भयंकर रोग के साथ मांदी को अपना पुत्र स्वीकार किया। मांदी स्वभाव से दुष्ट, तमोगुण वाला, हिंसक, क्रूर, कार्यों का नाश करने वाला, अकाल मृत्यु का कारण, अज्ञात शक्तियों द्वारा विघ्न उत्पन्न करने वाला है। हमारे ज्योतिष शास्त्र में शनि को आयुष्य कारक ग्रह के रूप में वर्णित करते हैं, लेकिन मांदी मृत्यु के समय का संकेत देता है। मांदी अशुभ उपग्रह होने के कारण अधिक अशुभ फल देता है। जब अन्य शुभ ग्रह शुभ फल देने वाले होते हैं तो उसके लिए मांदी कष्टदायक हो जाता है। जिस प्रकार शनि दुःख दायक है उसी प्रकार गुलिक (मांदी) भी अशुभ फल प्रदाता है। फलित ज्योतिष में मांदी का प्रमुख स्थान है मांदी और गुलिक अधिकतर मनिषियों के अनुसार एक ही है फिर भी उत्तर कालामृत के रचयिता इन्हे अलग-अलग कहते है। ज्योतिष ग्रंथो मे अधिकतर मांदी का ही ज्यादा उल्लेख मिलता है। मैंने भी इन्हे अपने अभ्यास के दौरान एक सा पाया है। अतः इस लेख में आगे मैं गुलिक या मांदी कहकर इसका उल्लेख करूंगा उन्हे आपको एक ही समझना है। दक्षिण भारत की जन्मकुंडली में अन्य ग्रहों के साथ मांदी का भी उल्लेख करना आवश्यक है अतः दक्षिण भारत में जन्मपत्रिका बनाते समय ही गुलिक (मांदी) की स्थापना कुंडली में कर दी जाती है। दक्षिण भारत के विद्वानों का मत है कि मांदी का प्रभाव अधिक सूक्ष्म होता है। इसके उपयोग से लग्न स्पष्ट की शुद्धता का भी शोधन किया जाता है
मांदी के कारकत्व:- तिल, दूर्वा, जलाऊ लकड़ी, नए वस्त्र, अग्नि, दही, मृत्यु संस्कार के लिए आवश्यक वस्तुएं, शव का श्रृंगार, अंतिम संस्कार विधि, जादू-टोना, साँप का फन, बिल्ली की खोपड़ी, मनुष्य की खोपड़ी, भूत-प्रेत, निम्न कोटि का मनुष्य , गंदगी, गंदी नाली, चूहे, सरीसृप, उल्लू, खंडहर हुई बावली-तालाब, शराब, सड़ी हुई मछली, सड़े हुए फल, सड़ा हुआ मांस, पिशाच विद्या, चिता-भस्म आदि को माना जाता है।
मांदी की दृष्टि :- मांदी की तीन दृष्टि 1 – सप्तम, 2- द्वितीय 3- द्वादश है।
मांदी राशियाँ: मेष और धनु मांदी की उच्च राशियाँ मानी जाती हैं, मकर और कुम्भ मांदी की स्व राशियाँ मानी जाती हैं, वृष, सिंह और मीन शत्रु राशियाँ मानी जाती हैं।
शनि के साथ अशुभ युति या दृष्टि संबंध सदैव अधिक अशुभ फल देता है। धनु राशि में मांदी अपनी अशुभता को खोकर अच्छे परिणाम देता है। लेकिन स्वराशि (धनु या मीन) में स्थित गुरु के साथ मांदी की युति अत्यंत अशुभ फल देती है।
बृहद पाराशर होरा शास्त्र, प्रश्न मार्ग, फल दीपिका और जातक पारिजात जैसे ग्रंथों ने मांदी के फल कथन को विस्तृत रूप से समझाया है।
मांदी की गणना :
हम जानते ही हैं कि शनि का अष्टमांश ही गुलिक/ खण्ड है। इस खण्ड के आरम्भ में जो लग्न स्पष्ट हो, वही गुलिक स्पष्ट है। हमें सर्वदा उदित गुलिक की गणना करनी चाहिए , उदाहरण से यह बात समझते हैं।
गुलिक/मांदी साधन दिन में यदि गुलिक जानना हों तो दिनमान में ८ का भाग देने से जो समय लब्धि हो उसे उस दिन निर्धारित ध्रुवाङ्क से गुणा करने पर जो गुणनफल मिलता है उसे सूर्योदय में जोड़ने जो समय मिलेगा इस समय पर से लग्न साधन करने पर गुलिक लग्न या गुलिक स्पष्ट मिलेगा।
गुलिक आरंभ ध्रुवाङ्क :
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उदाहरण-1 : 26.1.2023, गुरुवार, दिन में 14:00 बजे अहमदाबाद में गुलिक स्पष्ट करना है। अहमदाबाद का सूर्योदय समय 07:25 घंटे मिनिट है और सूर्यास्त समय 18:19 घंटे मिनिट है।
सूर्यास्त 18:19 में से सूर्योदय काल 07:25 घटाने पर हमें दिनमान(654 मिनट) 10:54 घंटे मिनिट मिले। इसका अष्टमांश 81.75 मिनट (01 : 21 : 45 घंटे मिनिट सेकंड ) है। आज गुरुवार दिन में जन्म होने से 2 ध्रुवाङ्क के शुरू होते ही गुलिकखण्ड शुरु होगा। अतः दूसरे खण्ड के आरम्भ क्षण में अहमदाबाद में जो लग्न स्पष्ट होगा, वही हमारा गुलिक स्पष्ट है। अतः सूर्योदय काल में एक अष्टमांश 81.75 मिनट (01:21:45 घंटे मिनिट सेकंड) का दो गुना 163.5 मिनट या 2 घंटे 43 मिनट 30 सेकण्ड जोड़ने से गुलिकारम्भ काल ज्ञात होगा। यह उदाहरण में सुबह 10:08:30 मिनट है। यह मीन राशि में 02.08 ‘ अंशादि गुलिक/मांदी हुआ।
अहमदाबाद का सूर्योदय समय – 07:25 अहमदाबाद का सूर्यास्त समय – 18:19 दिनमान (सूर्यास्त समय – सूर्योदय समय) = सूर्यास्त समय – 18:19 – सूर्योदय समय – 07:25 दिनमान – 10:54 घंटे मिनिट 10:54 घंटे मिनिट = 654 मिनिट दिनमान का अष्टमांश 81.75 मिनिट आया गुरुवार का होने से 2 ध्रुवाङ्क होने से अष्टमांश को 2 से गुणा करना होगा = 81.75 x 2 = 163.50 मिनिट अर्थात 2:43:30 घंटे मिनिट सेकंड हुआ। | 2:43:30 घंटे मिनिट सेकंड को अहमदाबाद के सूर्योदय के समय में जोड़ने पर अहमदाबाद का सूर्योदय समय – 07:25:00 + 02:43:30 गुलिकारम्भ समय 10:08:30 अब गुलिकारम्भ समय अहमदाबाद में जो लग्न स्पष्ट होगा वहीं लग्न के अंश के समीप आपको गुलिक का भी अंशादि मिलेगा यहाँ एक बात उलेखिनीय है कि यहाँ दिया गया गणित हमने कैलक्यूलेटर की मदद से गिना है और कंप्युटर सॉफ्टवेयर की गणना अति सूक्ष्म होने के कारण गणित (उत्तर) में कुछ कला विकला का अंतर संभव है। |
गुलिकारम्भ समय 10:08:30 समय अहमदाबाद में दिन के समय जो लग्न स्पष्ट जो होगा वह ही गुलिक स्पष्ट होगा अर्थात लग्न के करीब मीन राशि २ अंश २६ कला का गुलिक प्राप्त हुआ। अब इसी के अनुसार 14:00 बजे अहमदाबाद में गुलिक स्पष्ट करना है। तो वह एकादश भाव में होगा और मांदी के मीन राशि २ अंश २६ कला पर से उसकी नवांश राशि व अंशात्मक युति या दृष्टि संबंध भी गणना कर सकते है।
गुलिक आरंभ ध्रुवाङ्क :
| रवि | सोम | मंगल | बुध | गुरु | शुक्र | शनि |
दिवा | ६ | ५ | ४ | ३ | २ | १ | ० |
रात्रि | २ | १ | ० | ६ | ५ | ४ | ३ |
उदाहरण- 2: 26.1.2023, गुरुवार, रात्रि में 20:00 बजे अहमदाबाद में गुलिक स्पष्ट करना है। अहमदाबाद का सूर्योदय समय 07:25 घंटे मिनिट है और सूर्यास्त समय 18:19 घंटे मिनिट है। किन्तु रात्रिमान निकालने के लिए 27.1.2023 का सूर्योदय समय जरूरी है जो 7.25 है।
27.01.2023 के सूर्योदय काल 07:25 (31:25) में से 26.01.2023 का सूर्यास्त 18:19 में से घटाने पर हमें रात्रिमान के (786 मिनट) 13:06 घंटे मिनिट मिले। इसका अष्टमांश 98.25 मिनट (01:38:15 घंटे मिनिट सेकंड ) है। आज गुरुवार रात्रि में जन्म होने से 5 ध्रुवाङ्क के शुरू होते ही गुलिकखण्ड शुरु होगा। अतः इस समय में अहमदाबाद में जो लग्न स्पष्ट होगा, वही हमारे इष्टकाल का गुलिक स्पष्ट है। अतः सूर्यास्त काल 18:19:00 में एक अष्टमांश 81.75 मिनट (01:21:45 घंटे मिनिट सेकंड) का 5 गुना 491.25 मिनट या 8 घंटे 11 मिनट 15 सेकण्ड जोड़ने से गुलिकारम्भ समय ज्ञात होगा। गुलिकारम्भ समय 26:30:15 आया । अब गुलिकारम्भ समय अंग्रेजी तारीख अनुसार 27.01.2023 को 02.30.15 बजे अहमदाबाद में जो लग्न स्पष्ट होगा। यह वृश्चिक राशि में 02.59′ अंशादि गुलिक/मांदी हुआ।
अहमदाबाद का 27.01.2023, सूर्योदय समय – 07:25 इसमें 24.00 घंटे जोड़ने पर सूर्योदय समय – 31:25 अहमदाबाद का 26.01.2023 सूर्यास्त समय – 18:19 रात्रिमान (अगले दिन सूर्योदय समय – सूर्यास्त समय) = सूर्योदय समय – 31:25 – सूर्यास्त समय – 18:19 रात्रिमान = 13:06 घंटे मिनिट 13:05 घंटे मिनिट = 786 मिनिट दिनमान का अष्टमांश 98.25 मिनिट आया गुरुवार का होने से रात्री 5 ध्रुवाङ्क होने से अष्टमांश को 5 से गुणा करना होगा = 98.25 x 5 =491.25 मिनिट अर्थात 08:11:15 घंटे मिनिट सेकंड हुआ। | 08:11:15 घंटे मिनिट सेकंड को अहमदाबाद के सूर्यास्त समय में जोड़ने पर अहमदाबाद का सूर्यास्त समय – 18:19:00 + 08:11:15 गुलिकारम्भ समय 26:30:15 अब गुलिकारम्भ समय अंग्रेजी तारीख अनुसार 27.01.2023 को 02.30.15 बजे अहमदाबाद में जो लग्न स्पष्ट होगा वहीं लग्न के अंश के समीप आपको गुलिक का भी अंशादि मिलेगा यहाँ एक बात उलेखिनीय है कि यहाँ दिया गया गणित हमने गिना है और कंप्युटर सॉफ्टवेयर की गणना अति सूक्ष्म होने के कारण गणित (उत्तर) में कुछ कला विकला का अंतर संभव है। |
गुलिकारम्भ समय 26:30:15 समय 27.01.2023 को 02.30.15 बजे अहमदाबाद में दिन के समय जो लग्न स्पष्ट जो होगा वह ही गुलिक स्पष्ट होगा अर्थात लग्न के करीब वृश्चिक राशि 2 अंश 59 कला का गुलिक प्राप्त हुआ। अब इसी के अनुसार 20:00 बजे अहमदाबाद में गुलिक स्पष्ट करना है। तो वह एकादश भाव में होगा और मांदी के मीन राशि 2 अंश 29 कला पर से उसकी नवांश राशि व अंशात्मक युति या दृष्टि संबंध भी गणना कर सकते है।
गुलिक आरंभ ध्रुवाङ्क :
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उदाहरण- 2: 26.1.2023, गुरुवार, रात्रि में 20:00 बजे अहमदाबाद में गुलिक स्पष्ट करना है। अहमदाबाद का सूर्योदय समय 07:25 घंटे मिनिट है और सूर्यास्त समय 18:19 घंटे मिनिट है। किन्तु रात्रिमान निकालने के लिए 27.1.2023 का सूर्योदय समय जरूरी है जो 7.25 है।
27.01.2023 के सूर्योदय काल 07:25 (31:25) में से 26.01.2023 का सूर्यास्त 18:19 में से घटाने पर हमें रात्रिमान के (786 मिनट) 13:06 घंटे मिनिट मिले। इसका अष्टमांश 98.25 मिनट (01:38:15 घंटे मिनिट सेकंड ) है। आज गुरुवार रात्रि में जन्म होने से 5 ध्रुवाङ्क के शुरू होते ही गुलिकखण्ड शुरु होगा। अतः इस समय में अहमदाबाद में जो लग्न स्पष्ट होगा, वही हमारे इष्टकाल का गुलिक स्पष्ट है। अतः सूर्यास्त काल 18:19:00 में एक अष्टमांश 81.75 मिनट (01:21:45 घंटे मिनिट सेकंड) का 5 गुना 491.25 मिनट या 8 घंटे 11 मिनट 15 सेकण्ड जोड़ने से गुलिकारम्भ समय ज्ञात होगा। गुलिकारम्भ समय 26:30:15 आया । अब गुलिकारम्भ समय अंग्रेजी तारीख अनुसार 27.01.2023 को 02.30.15 बजे अहमदाबाद में जो लग्न स्पष्ट होगा। यह वृश्चिक राशि में 02.59′ अंशादि गुलिक/मांदी हुआ।
अहमदाबाद का 27.01.2023, सूर्योदय समय – 07:25 इसमें 24.00 घंटे जोड़ने पर सूर्योदय समय – 31:25 अहमदाबाद का 26.01.2023 सूर्यास्त समय – 18:19 रात्रिमान (अगले दिन सूर्योदय समय – सूर्यास्त समय) = सूर्योदय समय – 31:25 – सूर्यास्त समय – 18:19 रात्रिमान = 13:06 घंटे मिनिट 13:05 घंटे मिनिट = 786 मिनिट दिनमान का अष्टमांश 98.25 मिनिट आया गुरुवार का होने से रात्री 5 ध्रुवाङ्क होने से अष्टमांश को 5 से गुणा करना होगा = 98.25 x 5 =491.25 मिनिट अर्थात 08:11:15 घंटे मिनिट सेकंड हुआ। | 08:11:15 घंटे मिनिट सेकंड को अहमदाबाद के सूर्यास्त समय में जोड़ने पर अहमदाबाद का सूर्यास्त समय – 18:19:00 + 08:11:15 गुलिकारम्भ समय 26:30:15 अब गुलिकारम्भ समय अंग्रेजी तारीख अनुसार 27.01.2023 को 02.30.15 बजे अहमदाबाद में जो लग्न स्पष्ट होगा वहीं लग्न के अंश के समीप आपको गुलिक का भी अंशादि मिलेगा यहाँ एक बात उलेखिनीय है कि यहाँ दिया गया गणित हमने गिना है और कंप्युटर सॉफ्टवेयर की गणना अति सूक्ष्म होने के कारण गणित (उत्तर) में कुछ कला विकला का अंतर संभव है। |
गुलिकारम्भ समय 26:30:15 समय 27.01.2023 को 02.30.15 बजे अहमदाबाद में दिन के समय जो लग्न स्पष्ट जो होगा वह ही गुलिक स्पष्ट होगा अर्थात लग्न के करीब वृश्चिक राशि 2 अंश 59 कला का गुलिक प्राप्त हुआ। अब इसी के अनुसार 20:00 बजे अहमदाबाद में गुलिक स्पष्ट करना है। तो वह एकादश भाव में होगा और मांदी के मीन राशि 2 अंश 29 कला पर से उसकी नवांश राशि व अंशात्मक युति या दृष्टि संबंध भी गणना कर सकते है।
गुलिक आरंभ ध्रुवाङ्क :
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उदाहरण- 3 : 28.1.2023, शनिवार, दिन में 15:00 बजे अहमदाबाद में गुलिक स्पष्ट करना है। अहमदाबाद का सूर्योदय समय 07:25 घंटे मिनिट है और सूर्यास्त समय 18:20 घंटे मिनिट है।
सूर्यास्त 18:20 में से सूर्योदय काल 07:25 घटाने पर हमें दिनमान के घंटे मिनट 10:55 घंटे मिनिट(655 मिनीट) मिले। इसका अष्टमांश 81.875 मिनट (01:21:52 घंटे मिनिट सेकंड) है। आज शनिवार होने से 0 ध्रुवाङ्क के शुरू होते ही गुलिकखण्ड शुरु होगा। अतः 0 खण्ड के आरम्भ क्षण में अहमदाबाद में जो लग्न स्पष्ट होगा, गुलिक स्पष्ट है। अतः सूर्योदय काल में एक अष्टमांश 81.75 मिनट (01:21:45 घंटे मिनिट सेकंड) को 0 से गुणा करने पर 0.00 मिनट या 00 घंटे 00 मिनट 00 सेकण्ड जोड़ने से गुलिकारम्भ काल ज्ञात होगा। यह उदाहरण में जो सुबह का सूर्योदय का समय ही होगा 07:25:00 मिनट है। तब मीन राशि में 02.08 ‘ अंशादि गुलिक/मांदी हुआ।
अहमदाबाद का सूर्योदय समय – 07:25 अहमदाबाद का सूर्यास्त समय – 18:20 दिनमान (सूर्यास्त समय – सूर्योदय समय) = सूर्यास्त समय – 18:19 – सूर्योदय समय – 07:25 दिनमान – 10:55 घंटे मिनिट 10:55 घंटे मिनिट = 655 मिनिट दिनमान का अष्टमांश 81.875 मिनिट आया शनिवार का होने से 0 ध्रुवाङ्क होने से अष्टमांश को 0 से गुणा करना होगा = 81.75 x 0 = 00 मिनिट अर्थात 00:00:00 घंटे मिनिट सेकंड हुआ। | 00:00:00 घंटे मिनिट सेकंड को अहमदाबाद के सूर्योदय समय में जोड़ने पर अहमदाबाद का सूर्योदय समय – 07:25:00 + 00:00:00 गुलिकारम्भ समय 07:25:00 अब गुलिकारम्भ समय अहमदाबाद में जो लग्न स्पष्ट होगा वहीं लग्न के अंश के समीप आपको गुलिक का भी अंशादि मिलेगा यहाँ एक बात उलेखिनीय है कि यहाँ दिया गया गणित हमने गिना है और कंप्युटर सॉफ्टवेयर की गणना अति सूक्ष्म होने के कारण गणित (उत्तर) में कुछ कला विकला का अंतर संभव है। |
गुलिकारम्भ समय 07:25:00 समय अहमदाबाद में दिन के समय जो लग्न स्पष्ट जो होगा वह ही गुलिक स्पष्ट होगा अर्थात लग्न के करीब मकर राशि 13 अंश 41 कला का गुलिक प्राप्त हुआ। अब इसी के अनुसार 28.1.2023, शनिवार, दिन में 15:00 बजे अहमदाबाद में गुलिक स्पष्ट करना है। तो वह नवम भाव में होगा और मांदी के मकर राशि 13 अंश 41 कला पर से उसकी नवांश राशि व अंशात्मक युति या दृष्टि संबंध भी गणना कर सकते है।
विभिन्न भावों में गुलिका का प्रभाव
प्रथम भाव :
रोगार्त्तः सततं कामी पापात्माधिगतः शठः ।
तनुस्थे गुलिके जातः खलभावोऽतिदुःखितः॥ (बृ.पा.हो.शा.)
रोगार्त्तः सततं कामी पापात्माधिगतः शठः। मूर्त्तिस्थे गुलिके मन्दः खलभावोऽतिदुःखितः।।
यदि गुलिका लग्न में हो तो जातक रोगों से पीड़ित, कामी, पापी, धूर्त, दुष्ट और अत्यंत दुखी होगा।
मान्द्यब्दादिफलानि वच्मि गुलिके लग्नस्थिते मन्दधी रोगी पापयुते तु वञ्चनपरः कामी दुराचारवान् । (जातक पारिजात)
यदि लग्न में मान्दि स्थित हो तो जातक मन्दबुद्धि और रोगी होता है। यदि पाप ग्रह युक्त मान्दि लग्न में स्थित हो तो जातक तो वञ्चक, कामातुर और दुराचारी होता है।
मांदी/गुलिका लग्न में हो तो जातक के पास एक अच्छा स्थान और घर होगा, प्रचुर धन होगा , कृषि भूमि भि होगी और साथ ही वह दीर्घायु होगा।(पुलिप्पनी ज्योतिषम)
विमर्श: यदि मांदी के अंश और जातक के जन्म लग्न के अंश समान है, तो जातक जीवन भर दुखी रहेगा और कोई प्रगति नहीं कर पाएगा, यदि लग्न में मांदी और सूर्य के अंश एक ही हो तो जातक आत्मविश्वास विहीन, सदैव दूसरों के आधीन रहता है और वरिष्ठों, अधिकारी या पिता तुल्य लोगों से बाधाएं मिलती है। लग्न में मंगल के अंश और मांदी के अंश समान हो तो जातक क्रूर और दुष्ट होता है। लग्न में शनि और गुलिक के अंश समान हो तो जातक नौकर की तरह जीवन व्यतीत करता है और हमेशा दुखी रहता है। लग्न में राहु और मांदी के अंश बराबर हो तो जातक दुष्ट, चंचल स्वभाव का और मानसिक चिंता से पीड़ित होता है। लग्न में केतु और मांदी के अंश एक से हो तो जातक हर कार्य में असफल होता है और मन्त्र तंत्र बाधाओं से ग्रस्त होता है। यदि लग्न में मांदी के अंश और बुध, बृहस्पति या शुक्र जैसे शुभ ग्रह की डिग्री समान है, तो जातक जीवन में अच्छी प्रगति करता है। सुखी किन्तु मानसिक चिंता से पीड़ित होता है । यदि मांदी स्थित राशि का स्वामी ग्रह बलवान होकर केंद्र, त्रिकोण, स्वक्षेत्र, मित्रक्षेत्र या स्वयं की उच्च राशि में हो तो जातक धनी, प्रतापी, ऐश्वर्यवान, सभी प्रकार के सुखों से संतुष्ट, सरकार द्वारा सम्मानित और यशस्वी पुरुष द्वारा सम्मानित होता है। ऐसे योग में अन्य अशुभ फलों का नाश होता है। इसी प्रकार जब किसी बली शुभ ग्रह की दृष्टि मांदी पर पड़ती है तो मांदी का अशुभ फल कम हो जाता है। गुलिक जन्मकुंडली के साथ-साथ प्रश्न ज्योतिष में विशेष ध्यान देने योग्य है। यह जन्म समय सुधार, और ऐसी अन्य महत्वपूर्ण गणनाओं में एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंग है। यदि गुलिक लग्न में हो तो जातक को गंभीर दृष्टि दोष होता है। वह चोरी करने जैसा बुरा काम करेगा। वह धर्म की अवहेलना करेगा, संतान से वंचित होगा और मूर्ख होगा। उनकी आयु भी कम हो सकती है।
द्वितीय भाव :
विकृतो दुःखितः क्षुद्रो व्यसनी च गतत्रपः।
धनस्थे गुलिके जातो निःस्वो भवति मानवः॥ (बृ.पा.हो.शा.)
विकृतो दुःखितः क्षुद्रो व्यसनी च गतातपः। धनस्थे गुलिके जातो निःस्वो भवति मानवः’॥
(पाराशरहोराशास्त्र)
द्वितीय भाव में गुलिका हो तो जातक भद्दा, दीन, व्यसनी-नीच, पापी, निर्लज्ज और दरिद्र होगा।
वित्तस्थे विषयातुरोऽटनपरः क्रोधी दुरालापवान् पापव्योमचरान्विते गतधनो विद्याविहीनोऽथवा ॥ (जातक पारिजात)
द्वितीय भाव में मान्दि स्थित हो तो जातक विषयभोग के लिए आतुर, घुमक्कड़, क्रोधी और कटुभाषी होता है। द्वितीय भाव में यदि मांदी पापग्रह से युक्त हो तो जातक निर्धन और मूर्ख होता है।
यदि यह दूसरे भाव में है, जिसे धन भाव कहा जाता है, तो जातक झगड़ा करेगा, आँख या दृष्टि दोष होगा। समय काल में , वह धन का नाश करेगा और पृथ्वी पर “एक दुष्ट व्यक्ति” के रूप में कुख्यात होगा।
)पुलिप्पनी ज्योतिषम्)
विमर्श: द्वितीय भाव में सूर्य और मांदी की युति हो तो नेत्र की समस्या, वाणी की समस्या, पिता से मतभेद, सरकारी काम में बाधा, परिवार में बुजुर्गों से असहमति, धर्म के विरुद्ध गतिविधियों में लिप्त और उम्र से बड़े व्यक्तियों के साथ अनैतिक संबंध आदि। मांदी चन्द्रमा के संग होतो स्त्रियों के कारण बदनाम, मंगल के साथ होतो भाइयों से झगड़ा, धन की हानि, संपत्ति की हानि, अग्नि का भय, दुर्घटना का भय, यंत्रादि उपकरण के कारण हानि हो, अकस्मात के कारण चोट लगती है, बुध के संग मांदी का होना गबनवृति के कारण बदनाम होता है। गुरु के संग मांदी का परिवार के प्रति उदार, धार्मिक गतिविधियों के शौकीन और मधुरभाषी और अच्छे व्यवहार वाले किन्तु बारम्बार कह सुनाने वाले होते हैं। शुक्र के संग मांदी होने से अत्यधिक कामवृति के कारण नाजायज संबंध रखते हैं अतः जातक को स्वास्थ्य सम्बधी संकट हो सकते है। लेकिन धन-दौलत खूब मिलती हैं। शनि के संग मांदी होने से जातक निम्न कक्षा के कार्य में लिप्त, धन अभाव से ग्रस्त, परिवारजनों से विवाद, नौकर वर्ग से हानि से पीड़ित, व्यसनी आदि अशुभ फल भोगता है। राहु संग मांदी होने से जातक सांपों से डरने वाला, लोभी, धन का लोभी, चोरी करने का आदी, व्यसनी, पारिवारिक सफलता, सम्मान, प्रतिष्ठा का उल्लंघन करने वाला होता है। केतु के संग मांदी होने से वक्तव्य में खामी, दृष्टि संबधित तकलीफ, प्रेतबाधा, धन हानि, गूढ विद्या में आसक्ति, कचहरी के विवाद में पराजय आदि अशुभ फलों को जातक को भोगना पड़ता है। आम तौर पर पाप ग्रह दूसरे भाव में अधिक अशुभ फल देते हैं लेकिन शुभ ग्रहों के साथ होने पर अशुभ फल का अनुपात कम हो जाता है।
यदि गुलिका द्वितीय भाव में हो तो जातक दुर्भाग्यशाली होगा। उसकी पढ़ाई बीच-बीच में बाधित होती रहेगी। जातक वाणी में कठोर होगा, अपने लोगों से दूर रहेगा, पारिवारिक सुख नहीं होगा, असत्य भाषी होगा, षडयन्त्रकारी होगा, अन्य लोगों के साथ व्यवहार करने में उसे असुविधा रहेगी। द्वितीय भाव के अधिपति की दशा काल में मुसीबतें और मृत्यु तुल्य कष्ट हो सकते है।
तृतीय भाव :
चार्वाङ्गो ग्रामपः पुण्यसंयुक्तः सज्जादप्रियः।
सहजे गुलिके जातो मानवो राजपूजितः॥ (बृ.पा.हो.शा.)
यदि गुलिका तृतीय भाव में हो तो जातक दिखने में आकर्षक, ग्राम का मुखिया, गुणी पुरुषों की संगत करने वाला और राजा द्वारा सम्मानित होता है।
विरहगर्वमदादिगुणैर्युतः प्रचुरकोपधनार्जनसम्भ्रमः । विगतशोकभयश्च विसोदरः सहजधामनि मन्दसुते यदा॥ (जातक पारिजात)
यदि तृतीय भाव में गुलिक स्थित हो तो जातक विरह युक्त, अभिमानी, मदान्ध, अत्यन्त क्रोधी, धनार्जन में व्यग्र (भ्रमित), शोक और भय रहित, सहोदर भाइयों से हीन और निर्धन होता है।
तीसरे स्थान में मांदी, जातक अपने भाइयों और मित्रों के साथ झगड़ालू स्वभाव का होगा। साथ ही वह सत्यवादी और धार्मिक कार्यों को करने वाला होगा।
)पुलिप्पनी ज्योतिषम्)
विमर्श: तृतीय भाव में मांदी सूर्य से युति या दृष्टि होने पर सरकारी कार्य में असफलता, उद्यम में बाधा। मांदी व चंद्र युति हो या दृष्टि हो तो माता से अनबन, स्त्री के कारण तिरस्कार, कफ से कष्ट, रोग से बाधा मंगल के संग मांदी होने से साहसी स्वभाव के होते हुए भी कचहरी विवाद में पराजय, छोटे भाइयों से झगड़ा, मशीनरी से हानि, बुध के संग मांदी पढ़ाई में बाधा, व्यापार में घाटा। गुरु के संग मांदी यश-मान, प्रतिष्ठा में वृद्धि, अधिकार की प्राप्ति, धन की प्राप्ति। शुक्र के संग मांदी अनैतिक संबंधों के कारण परिवार में बदनामी होगी, लेकिन पुरुष जातकों के लिए महिलाओं की वजह से आय में वृद्धि होगी। शनि के संग मांदी प्रयत्नों में रुकावट, निम्न कक्षा के लोगों से हानि। राहु का मांदी संग होने से निम्न कक्षा के व्यक्तियों का सहवास और विष संबंधी औषधि के व्यापार से लाभ तीसरे भाव में गुलिक के साथ, जातक के अनुज को मुसीबत रहती है। हालाँकि काफी धनवान होने पर भी वह व्यथित महसूस करेगा। केतु के संग मांदी होने से गुप्त रोग द्वारा पीड़ा, समाज में बदनामी के प्रसंग बनते है, छोटे भाइयों से झगड़ा, धार्मिक कार्यों में विरोध आदि होता है।
चतुर्थ भाव :
रोगी सुखपरित्यक्तः सदा भवति पापकृत् ।
गुलिके सुखभावस्थे वातपित्तअधिको भवेत्॥ (बृ.पा.हो.शा.)
रोगी सुखपरित्यक्तः सदा भवति पापकृत् । यमात्मजे सुखस्थे तु वातपित्ताधिको भवेत् ॥
यदि गुलिका चतुर्थ भाव में हो तो जातक रोगी, सुख से रहित, पापी और वात और पित्त की अधिकता से पीड़ित होगा।
हिबुकभवनसंस्थे मन्दजे वीतविद्या– धनगृहसुखबन्धुक्षेत्रयातोऽटनः स्यात् । (जातक पारिजात)
यदि मान्दी चतुर्थभावगत हो तो जातक विद्याविहीन, निर्धन, गृहहीन, स्वजनों से हीन, भूमिहीन तथा यायावर होता है।
चौथे स्थान में गुलिका जातक को निर्दोष होने पर भी अपने गांव से निकलवा देता है और कुछ समय के लिए अनजानी जगह में निवास कर सकता है।
)पुलिप्पनी ज्योतिषम्)
विमर्श: यदि चतुर्थ भाव में सूर्य और मांदी की युति हो और इस युति पर व्यय स्थान में स्थित बृहस्पति की दृष्टि हो तो जातक को अपनी प्रगति के लिए मातृभूमि से दूर जाना पड़ता है। यदि मांदी चतुर्थ भाव में सूर्य के साथ युति में हो और इस युति पर अष्टम भाव में स्थित बृहस्पति की दृष्टि हो, तो जातक को अचानक विरासत के योग बनते है। यदि चतुर्थ भाव में सूर्य और मांदी की युति हो और इस युति पर बृहस्पति की दृष्टि हो तो जातक के विदेश यात्रा के योग बनते हैं। सूर्य और मांदी की युति हो तो सफलता, सम्मान, वैभव की हानि, पिता से दूरी और रोग से पीड़ित।चन्द्रमा और मांदी की युति हो तो माता के सुख, स्त्री के वियोग कारण दुःख और रोग ।
यदि मंगल चन्द्रमा और मांदी की युति हो तो माता का वियोग। जन्म स्थान में प्रगति न होना। अपने घर का सुख नहीं रहता। पित्त विकारों से दर्द। चतुर्थ भाव में मांदी के साथ मंगल की युति हो और दशम भाव में स्थित बृहस्पति इस युति को देखता हो, तो जातक तेजस्वी होता है और अपने पुरुषत्व के कारण जीवन में बहुत प्रगति करता है।
बुध और मांदी की युति हो तो व्यापार का नाश, मामा से झगड़ा और चर्म रोग से पीड़ित।
गुरु और मांदी की युति से रोग, पीड़ा, धन की हानि, धार्मिक कार्यों से दूर रहना और बुजुर्गों और ब्राह्मणों का आशीर्वाद से वंचित।
शुक्र और मांदी की युति से अति कामीवृति , विवाहेतर संबंधों के कारण घरेलू कलह, बीमारी, अति कामीवृति कारण धन की हानि।
शनि और मांदी की युति हो तो नौकरी पेशा वर्ग के लिए बार-बार नौकरी के स्थान परिवर्तन के योग, माता को रोग
मांदी व शनि की युति हो और इस युति पर दसम भाव में स्थित गुरु की दृष्टि हो तो जातक मकान जमीन जायदाद और संपती का मालिक बनता है एवं व्यापार में अच्छी प्रगति करता है।
मांदी शनि की युति हो और इस युति पर दसम भाव में स्थित चंद्र की परस्पर दृष्टि हो तो मातृ वियोग की संभावना होती है।
राहु और मांदी की युति से चोर भय, शराब जैसी लत से रोग, पढ़ाई में बाधा और स्त्री सुख से वंचित।
जातक किसी से दोस्ती नहीं करेगा बल्कि अपने रिश्तेदारों सहित अन्य लोगों के प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार करेगा। वह वाहनों से रहित होगा या वाहन के माध्यम से जोखिम का सामना करेगा। उसके पास रहने के लिए अच्छा घर नहीं होगा। उसके अंतिम दिन दयनीय होंगे और एक लंबी बीमारी के बाद पीड़ादायक मृत्यु होगी।
पंचम भाव :
विस्तुतिर्विधनोऽल्पायुर्द्वेषी क्षुद्रो नपुंसकः।
गुलिके सुतभावस्थे स्त्रीजितो नास्तिको भवेत् ॥
विस्तुतिर्विधनोऽल्पायुद्वेषी क्षुद्रो नपुंसकः । सुते सगुलिको जातो स्त्रीजितो नास्तिको भवेत् ॥
(पाराशरहोरा)
पाँचवे भाव मे गुलिक जातक निंदक, निर्धन,अल्पायु, द्वेषी, नास्तिक एवं अपनी पत्नी के वशीभूत रहने वाला बनाता है।
तनयभवनयाते मन्दसूनौ विशील-श्चलमतिरघबुद्धिः स्वल्पपुत्रोऽल्पजीवी ॥ (जातक पारिजात)
यदि मांदी पंचम भावस्थ हो तो जातक शीलरहित, चञ्चल बुद्धि, पापबुद्धि, अल्प पुत्र और स्वयं अल्पायु होता है।
पंचम स्थान में शनि की पुत्र गुलिका अच्छी नैतिकता प्रदान करती है। वह निःसंतान होगा। वह एक महान योद्धा के रूप में चमकेगा। वह शत्रुओं पर विजय पाने का उपाय जानता है, अन्न से समृद्ध , वीर और धनवान होगा।
)पुलिप्पनी ज्योतिषम्)
विमर्श: सूर्य और मांदी की युति हो तो सरकारी कार्यों में बाधा, प्रयास किए गए कार्यों में विफलता, रोग, संदिग्ध स्वभाव, पिता की बीमारी आदि अशुभ फल देता है। चंद्र और मांदी की युति हो तो प्यार में असफलता, कन्या संतान से परेशानी और अपमान, धार्मिक कार्य और दैवीय कार्यों में निरासक्ति देता है, मंगल और मांदी की युति हो तो अत्यंत गुस्सैल स्वभाव, निर्लज्ज, निर्दयी, सन्तान का नाश, उदर रोग के कारण शल्य क्रिया, अग्नि का भय, सन्तान को कष्ट, प्रेम से विहीन। बुध और मांदी की युति हो तो पढ़ाई में रुकावट, मामा से अनबन, संतानहीनता। गुरु और मांदी की युति हो तो मांदी के दोष को कम करती है और जातक को संतान सुख, सफलता, सम्मान, प्रतिष्ठा का सुख, धन-संपत्ति आदि का सुख देती है। शुक्र और मांदी की युति जातक को अधिक कामातुरता देती है। विवाह से पूर्व शरीर सुख का अवसर देता है और एक से अधिक व्यक्तियों के साथ यौन सुख में लिप्त होता है। शनि और मांदी की युति अधिक अशुभ फल देती है। संतान को रोग, मानसिक मंदता, अपंगता , संतान उत्पति में परेशानी और आजीविका के लिए अधिक श्रम का कारण बनती हैं। राहु और मांदी की युति हो तो जातक स्वार्थी, दुष्ट, हठी और संतानहीन होता है। केतु और मांदी की युति हो तो जातक को विकलांग या मानसिक रूप से मंद संतान होगी। धार्मिक कार्यों में बाधा एवं शत्रुओं से कष्ट होगा। इस भाव में गुलिका होने से जातक कुदरत व ईश्वर के भय को नहीं मानता है और अपनी पत्नी के वश में रहता है। उसका व्यक्तिगत स्वभाव लोगों को पसंद नहीं होता है।
पंचम भाव में मांदी और दत्तक पुत्र का योग :
- यदि पंचम भाव में मिथुन, कन्या, मकर या कुम्भ राशि हो और पंचम भाव में शनि पाप युति में हो तो दत्तक पुत्र प्राप्त होता है।
- लग्नेश या पंचमेश या सप्तमेश निर्बल हो और मांदी से सम्बद्ध हो तो दत्तक पुत्र योग होता है।
- कन्या, तुला, कुम्भ या वृष लग्न हो और पंचम या एकादश भाव में शनि के साथ मांदी की युति हो तो जातक को दत्तक पुत्र योग होता है
मांदी और संतान दोष:
- यदि पंचम भाव में मांदी, पंचमेश और राहु की युति हो तो सर्प दोष के कारण संतान नहीं होने की प्रबल संभावना होती है। पंचम भाव में मांदी, केतु और पंचमेश की युति हो तो ब्राह्मण श्राप से संतान नहीं होगी।
- यदि पंचम भाव में मांदी, शनि और राहु की युति संतान बाधा।
- यदि पंचम भाव में मांदी बृहस्पति के साथ अंशात्मक युति में हो तो जातक संतान उत्पति में अनेक विघ्न आएंगे। गुलिक के संतान भाव में होने से जातक की पौरूष या संतान क्षमता काफी प्रभावित होगी।
- बृहस्पति और 5 वें का स्वामी अनुकूल न हों तो संतान प्राप्ति में दिक्कत आती है।
षष्ट भाव :
वीतशत्रुः सुपुष्टाङ्गो रिपुस्थाने यमात्मजे।
सुदीप्तः सम्मतः स्त्रीणांसोत्साहः सुदृढो हित:॥ (बृ.पा.हो.शा.)
‘वीतशत्रुः सुपुष्टाङ्गो रिपुस्थाने यमात्मजे । सुदीप्तः सम्मतः स्त्रीणां सोत्साहः सुदृढः हितः ॥
यदि गुलिका षष्ठ भाव में हो तो जातक शत्रुओं से रहित, हृष्ट-पुष्ट शरीर वाला, वैभवशाली, पत्नी का प्रिय, उत्साही, अत्यंत मिलनसार स्वभाव का होता है।
बहुरिपुगणहन्ता भूतविद्याविनोदी, यदि रिपुगृहयाते मन्दपुत्रे तु शूरः ।(जातक पारिजात)
यदि मान्दी शत्रुभाव (छठे भाव) में स्थित हो तो जातक अनेक शत्रुओं को पराजित करने वाला, प्रेतविद्या का साधक और बलवान् होता है।
छठे स्थान में यह गुलिक जातक को दीर्घजीवी, परोपकारी और वीर बनाता है। यह अन्य ग्रहों की ताकत के अनुसार तय किया जा सकता है।
)पुलिप्पनी ज्योतिषम्)
विमर्श: वह बुरी आत्माओं को नियंत्रित करने में (जादू टोना) सक्षम और ऐसी उपलब्धियों से आजीविका एवं धनोपार्जन अर्जित करता है। उसे संतान की प्राप्ति होगी। वह बहुत साहसी होगा। षष्ट भाव में गुलिका शुभ परिणाम देती है अतः छठा भाव गुलिक युक्त हो तो रोगों से मुक्ति मिलती है।
सूर्य और मांदी की युति से पिता को रोग, सरकार से बाधा, पित्त के रोग से पीड़ित होना। चंद्र और मांदी की युति से मानसिक अशांति, प्रयास कार्यों में रुकावट, नवजात शिशु के लिए बालारिष्ट योग। मंगल और मांदी की युति भाइयों से झगड़ा, आग और मशीनरी से नुकसान, कर्ज, गर्मी के कारण बीमारी, दुश्मनी। बुध और मांदी की युति मामा से अनबन, कारोबार में घाटा। गुरु और मांदी की युति से धार्मिक या शुभ कार्यों में विघ्न, शत्रुता और रोग से चिंता। शुक्र और मांदी की युति से अत्यधिक भोग विलास, विवाहेत्तर संबंध के कारण वैवाहिक जीवन में कलह। शनि और मांदी की युति से अत्यधिक शारीरिक श्रम, नीची जाति के लोगों के साथ सहवास के कारण समाज में तिरस्कार और अपमान सहना पड़ता है। राहु और मांदी की युति विष, शत्रु, व्यसनों के कारण धन का अभाव। केतु और मांदी की युति से एक लाइलाज और पुरानी बीमारी की संभावना होती है ।
मांदी से होने वाले रोगों का विचार
- यदि छठे भाव में मांदी के साथ शनि और राहु की युति हो और किसी शुभ ग्रह से संबंध न हो तो जातक उन्माद से पीड़ित होगा।
- प्रेतबाधा, एलर्जी, मिर्गी और हकलाना, ऐसे रोगों का मुख्य कारण छठे भाव की मांदी है।
सप्तम भाव:
स्त्रीजितः पापकृज्जारः कृशाङ्गो गतसौहृदः ।
जीवितः स्त्रीधननैव गुलिके सप्तमस्थिते ॥ (बृ.पा.हो.शा.)
स्त्रीजित: पापकृज्जारः कृशाङ्गो गतसौहृदः । जीवितः स्त्रीधनेनैव सप्तमस्थे रवेः सुते‘ ।(पाराशरहोरा)
गुलिक सप्तम भाव में हो तो जातक अपने जीवनसाथी को आधीन रखने वाला, पापी, दूसरों की स्त्रियों के पास जाने वाला, दुर्बल, मित्रता से रहित तथा पत्नी (या स्त्री) के धन पर निर्भर रहने वाला होता है।
कलहकृद्दिनपौत्रे कामयाते कुदारः, सकलजनविरोधी मन्दबुद्धिः कृतघ्नः ॥(जातक पारिजात)
यदि गुलिका सप्तम भावगत हो जातक विवाद- कलहप्रिय, दुष्ट स्त्री से युक्त, विरोधी, मन्दबुद्धि और कृतघ्न होता है।
सातवें स्थान में गुलिका जातक अपनी अनियमित गतिविधियों के माध्यम से धन की हानि करवाएगा , भगवान शिव के क्रोध के कारण जीवन में संकट (जीवन काल की महत्वपूर्ण अवधि में ) का सामना करना पड़ता है।
)पुलिप्पनी ज्योतिषम्)
विमर्श : सातवें घर में गुलिका होने से जातक स्त्री के धन या अपने स्वयं के जीवनसाथी के योगदान के माध्यम से फलता-फूलता है। उनका वैवाहिक जीवन उन्हें कोई खुशी नहीं देगा। उसके संभवतः एक से अधिक विवाह हो सकते है। उसका ज्ञान सीमित होता है। जनसामान्य के साथ व्यवहार करते हुए वह ग़लतफ़हमी और दुश्मनी का शिकार होगा। .
सूर्य और मांदी की युति विवाह में देरी और विच्छेद, चन्द्रमा और मांदी की युति से जीवन साथी को रोग, यौन सुख में कमी। मंगल और मांदी की युति प्रेम में अशांति, भाइयों से झगड़ा, तलाक, वाहन दुर्घटना। बुध और मांदी की युति साझेदारी व्यवसाय में घाटा, जननेंद्रिय रोगों के कारण नपुंसकता। गुरु और मांदी की युति से धार्मिक संस्थाओं में अधिकार मिलता है किन्तु बुजुर्गों और गुरुजन से मतभेद होता है। शुक्र और मांदी की युति अत्यधिक भोग, व्यापार में लाभ, स्त्री से लाभ। शनि और मांदी की युति जीवनसाथी को बीमारी, नौकरों द्वारा हानि, आर्थिक परेशानी से संघर्ष करना। राहु और मांदी की युति रक्त विकार से होने वाली बीमारियों से चिंता, निम्न कोटि के लोगों का साथ और चरित्रहीनता के कारण समाज में प्रतिष्ठा की हानि। केतु और मांदी की युति अज्ञात रोगों से पीड़ित, दांपत्य जीवन में अलगाव, स्थाई आमदनी की चिंता रहती है
अष्टम भाव:
क्षुद्रदुःखित ऋरस्तीक्ष्णरोषोऽतिनिघृणः ।
रन्धगे गुलिके निःस्वो जायते गुणवर्जितः॥(बृ.पा.हो.शा.)
‘क्षुधालुर्दुःखितः क्रूरस्तीक्ष्णशेषोऽतिनिर्घृणः । रन्ध्रे प्राणहरो नि:स्वो जायते गुणवर्जितः ॥
गुलिक अष्टम भाव में हो तो जातक भूख से व्याकुल, दीन, निष्ठुर, अति गुस्सैल, अति निर्दयी, दरिद्र तथा सद्गुणों से रहित होता है।
विकलनयनवक्रः स्वल्पदेहोऽष्टमस्थे । (जातक पारिजात)
यदि मान्दी अष्टम भाव में स्थित हो तो जातक नेत्र का सजल रहने के रोग से पीड़ित, क्षीणकाय।
आठवें स्थान में गुलिका जातक को मन से दुष्ट बना देती है। जातक का चेहरा बदसूरत होगा।
)पुलिप्पनी ज्योतिषम्)
विमर्श : शनि के पुत्र गुलिक की आठवें घर की स्थिति के कारण जातक कुपोषण का शिकार होगा। उसका चेहरा बदसूरत होगा। उसके दांत पीले होंगे। उनका कद काफी छोटा होगा। सूर्य और मांदी की युति हो तो जातक चोरी और हिंसा के लिए सरकारी दंड भुगतता है और क्रूर स्वभाव का होता है। चंद्र और मांदी की युति हो तो स्त्री द्वेषी, अनैतिक कार्यों के कारण समाज में बदनामी होती है। मंगल और मांदी की युति गर्मी और पित्त के कारण होने वाले रोगों से पीड़ित जातक, झगड़े, वाहन और मशीनरी से चोट लगने की संभावना। बुध और मांदी की युति हो तो असामाजिक तत्वों के साथ आपराधिक गतिविधियों में शामिल होगा। शराब और अन्य नशीले पदार्थों का कारोबार करता है। गुरु और मांदी की युति हो तो घर के बुजुर्गों से दूर, भाइयों और धर्म से दूर हो जाता है। शुक्र और मांदी की युति अपनी पत्नी की कमाई पर जीवन यापन करता है फिर भी स्त्री द्वेषी करता है । शनि और मांदी की युति हो तो शारीरिक कमजोरी, वात से पीड़ित, यात्रा पर आत्महत्या की संभावना, चोरों का भय, राहु और मांदी की युति रक्त दोष के कारण लंबे समय तक शरीर में दर्द रहना, जहर खाने से या फूड पॉइजनिंग के कारण असामयिक मृत्यु। केतु और मांदी की युति अज्ञात शक्तियों द्वारा बाधित , जादू-टोना के कारण शारीरिक पीड़ा और निरंतर भय के वातावरण में रहना पड़ता है।
अष्टम भाव में मांदी के आधार पर नीचे बताए गए योगों से जातक की मृत्यु का समय निर्धारित किया जा सकता है।
- स्पष्ट मांदी के राशि अंशादि से, स्पष्ट शनि की राशि अंशादि घटाने पर जो राशि स्फुट (राशि अंशादि) प्राप्त हो उस राशि की त्रिकोण राशि या उस बिन्दु की नवांश राशि या नवांश राशि की त्रिकोण राशि पर से शनि अंशात्मक गोचर करे तब जातक की मृत्यु की प्रबल संभावना होती है।
- लग्न, अष्टमेश, लग्न या चंद्र से 22वें भाव का द्रेष्कान का स्वामी ग्रह, मांदी या निर्बल चंद्र की नवांश राशि या नवांश राशि की त्रिकोण राशि पर से शनि अंशात्मक गोचर करे तब जातक की मृत्यु की संभावना होती है।
नवम भाव:
बहुक्लेशः कृशतानुर्दुष्टकर्मातिनिघृणः ।
गुलिके धर्मगे मन्दः पिशुनो बहिराकृतिः ॥ (बृ.पा.हो.शा.)
बहुक्लेशो कृशतनुर्दुष्टकर्मातिनिर्घृणः । गुलिके धर्मगे मन्दः पिशुनो बहिराकृतिः ॥
यदि गुलिका नवम भाव में हो तो जातक अनेक परीक्षाओं से गुजरेगा, दुर्बल होगा, दुष्ट कर्म करेगा, अति निर्दयी, आलसी और कथावाचक होगा।
गुरुजनपितृहन्ता नीचकृत्यो गुरुस्थे । (जातक पारिजात)
यदि मान्दी नवमस्थ हो तो गुरुजन और पिता का अहित करने वाला तथा नीच होता है।
यदि गुलिका नौवें (जो दान का स्थान है) घर में हो तो जातक आकर्षक चेहरे वाला होगा। वह अपने पिता के प्रति कृतघ्न होगा। वह अपने धन से सुख भोगता है।
)पुलिप्पनी ज्योतिषम्)
विमर्श: यदि नवम भाव में शनि और राहु की युति के संग मांदी हो या मांदी की दृष्टि हो तो जातक दुष्कर्मी होता है।
यदि नवमेश और गुलिक की युति नवम भाव में हो और इस युति पर प्रबल पाप ग्रह की दृष्टि हो तो जातक धर्मभ्रष्ट होता है। और धर्म का ढोंग करके समाज और जनता को ठगता है और खूब पैसा कमाता है।
यदि नवम भाव में मांदी ग्रह हो तो जातक के जन्मोपरांत पिता और घर के बड़े बुजुर्गों की उन्नति बाधित होती है, विशेषकर पिता को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है और पिता की आयु भी कम हो जाती है। इसके अलावा, जातक भावनाहीन, नास्तिक, हमेशा पाप कर्मों में लिप्त, दुर्भाग्यशाली और संतान सुख से वंचित होगा। नवम भाव में मांदी ग्रह शुभ फल की अपेक्षा अशुभ फल अधिक देता हैं।
यदि गुलिका नवम भाव में हो तो जातक पिता विहीन होने की संभावना होती है, जातक बचपन में ही पितृ सुख और सौभाग्य रहित हो जाएगा। जातक का कोई भी उपक्रम फल नहीं देगा।
दसम भाव:
पुत्रान्वितः सुखी भोक्ता देवग्न्यर्चनवत्सलः ।
दशमे गुलिके जातो योगधर्माश्रितः सुखी ॥ (बृ.पा.हो.शा.)
पुत्रान्वित: सुखी भोक्ता देवाग्न्यर्चनवत्सलः । दशमे गुलिके जातो योगधर्माश्रितः सुखी ॥ (पराशरहोरा)
गुलिक दसवें भाव में हो तो जातक पुत्रों से युक्त, सुखी, अनेक वस्तुओं का भोग करने वाला, देवताओं और अग्नि की पूजा करने में रुचि रखने वाला, ध्यान और धर्म का अभ्यास करने वाला होता है।
अशुभशतसमेतः कर्मगे मन्दसूनौ, निजकुलहितकर्माचारहीनो विमानः ॥ (जातक पारिजात)
दशम भाव में स्थित हो तो जातक असत् कार्यकर्त्ता, स्वकुलोत्कर्ष-विरोधी और तिरस्कृत होता है ॥
दसवें स्थान (जो व्यापार पर शासन करता है) में गुलिक, जातक को कंजूस बना देगा, कृतघ्नतापूर्ण कार्य करेगा, ग्रह स्थिति की गणना में कुशल होगा अर्थात ज्योतिष होगा और म्लेच्छों (प्रदूषित घरों में से ) के घरों में भोजन प्राप्त करके अपना जीवन व्यतीत करेगा। ग्रहों के बल का पता लगाने के बाद इस फलकथन को निर्भीकता से सभी को बताएं।)पुलिप्पनी ज्योतिषम्)
विमर्श:
सामान्यतः दशम भाव में स्थित मांदी अपने साथ स्थित शुभ ग्रह की शुभता को नष्ट कर देता है। जातक स्वभाव से जिद्दी और अक्कड़ होता हैं। वह किसी भी कार्य को बड़े जोश के साथ शुरू करता है लेकिन उसे पूरा करने में विफल रहता है। शत्रुओं से सदैव पीडि़त रहेंगे। ऐसे लोगों को अपना काम पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है और सफलता के लिए काफी देर तक इंतजार करना पड़ता है।
कर्म स्थान में मांदी यदि पाप ग्रह से युक्त या दृष्ट होगा तो जातक हमेशा अपने कर्म क्षेत्र में दुश्मनों से पीड़ित होगा नौकरी में अपने ऊपरी अधिकारी से असहमति रहती है, तर्क कुतर्क के कारण जातक की उन्नति रुक जाती है। बार-बार स्थानांतरण (बदली) की या नौकरी व व्यवसाय परिवर्तन की संभावना रहती है। माता-पिता के साथ भी ठीक से व्यवहार नहीं होता है।
कर्म स्थान में मांदी, शुभ ग्रहों की युति या दृष्टि में हो तो उसके कर्म क्षेत्र में किसी भी प्रकार की बाधाएँ हैं, तो वह ऐसी बाधाओं को दूर कर सकता है और अपने कार्य क्षेत्र में प्रगति कर सकता है। जातक अनुसंधान प्रिय होता है। वाहन सुख उत्तम रहेगा। स्वतंत्र उद्योग करने के लिए निरन्तर प्रयास होते रहते हैं परन्तु ऐसे प्रयासों में सफलता भाग्य के कारण ही मिलती है।
यदि दशम भाव में मांदी-मंगल के साथ युति में हो तो जातक इंजीनियरिंग उद्योग का विशेषज्ञ और क्रांतिकारी विचारक होता है।
यदि दशम भाव में मांदी शनि की युति हो तो जातक हमेशा मेहनती होता है और वह कितना भी प्रयास कर ले उसके जीवन में कोई विशेष प्रगति नहीं होती है।
यदि दसवें भाव में मांदी- राहु की युति हो तो जातक इंजीनियरिंग या मेडिकल क्षेत्र में काम करेगा लेकिन छल-कपट की आदत के कारण जीवन में कोई प्रगति नहीं कर पाएगा।
यदि दशम भाव में मांदी केतु के साथ युति या दृष्टि में हो तो जातक को अपने कर्म क्षेत्र में बार-बार बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण वह कर्म क्षेत्र कोई प्रगति नहीं कर पाता है। ऐसे जातक अपनी माता से भी अच्छे संबंध नहीं बना पाते हैं।
दशम भाव में स्थित मांदी हमेशा शुभ और अशुभ की तरह मिश्रित परिणाम देता है क्योंकि अकेला मांदी हमेशा अच्छा परिणाम देता है और शुभ ग्रहों की दृष्टि वाला मांदी भी अच्छे परिणाम देता हैं लेकिन अशुभ ग्रहों की दृष्टि वाले मांदी हमेशा अशुभ परिणाम ही देता है।
दशम भाव में मांदी की स्थिति योग, ध्यान और ऐसी अन्य उपलब्धियों के लिए अनुकूल साबित होगी। जातक , एक स्तर पर, एक विधर्मी में बदल जाएगा या अपने धार्मिक पथ को त्याग देगा।
एकादश भाव:
सुस्तभोगी प्रजागरो बन्धूनां च हिते रतः।
लाभस्थे गुलिके जातो नीचाङ्ग सर्वभौमकः॥(बृ.पा.हो.शा.)
गुलिका 11वें भाव में हो तो जातक निम्न वर्ग की स्त्रियों का भोग करने वाला, पुरुषों का नेता, अपने सम्बन्धियों का सहायक, कद में छोटा और बादशाह होता है।
अतिसुखधनतेजोरूपवान् लाभयाते दिनकरसुतपुत्रे चाग्रजं हन्ति जातः ।(जातक पारिजात)
यदि मान्दि एकादशभावस्थ हो तो जातक अत्यन्त सुखी, धनिक, तेजस्वी और सुदर्शन होता है किन्तु बड़े भाई के लिए शुभद नहीं होता।
यदि गुलिका ग्यारहवें स्थान पर हो तो जातक सम्मानित और गुणवान होगा। वह औचित्य और धन भी प्रदान करता है। उसके जीवन काल की गणना उसके ग्रहों के बल से की जानी चाहिए। जातक दुष्ट वाममार्गी तांत्रिक का सहारा ले सकता है। )पुलिप्पनी ज्योतिषम)
विमर्श:
- जातक धनवान बनता है। लेकिन दोस्तों की वजह से बिजनेस में घाटा होता है।
- उधार देने के व्यवसाय में हानि होती है।
- संतान प्राप्ति में देरी होती है और संतान के स्वास्थ्य की चिंता रहती है।
- जीवन साथी से अनबन होती है।
- मांदी पाप ग्रह के प्रभाव में हो तो व्यापार में घाटा, बड़े भाई की अकाल मृत्यु, संतान हानि, मित्रों से विश्वासघात आदि के योग बनते हैं।
- मांदी की मंगल के साथ अंशात्मक युति हो तो बड़े भाई को वाहन दुर्घटना का खतरा , बहू या दामाद को रक्त संबंधी रोग या शल्य चिकित्सा या दुर्घटना का भय होगा।
- शनि के साथ मांदी की युति हो तो जातक को अपने सेवक वर्ग से हानि का भय होता है, संतान हीनता के कारण संतान को गोद लेना पड़ सकता है, पैर में दर्द, उद्यमी जातक को व्यवसाय में देरी से लाभ मिलता है।
- मांदी राहु के साथ हो तो अनैतिक वैवाहिक संबंध के कारण प्रतिष्ठा की हानि।
- मांदी केतु के साथ हो तो जातक का बड़ा भाई असाध्य रोग से पीड़ित होता है या बड़े भाई की अकाल मृत्यु (संदिग्ध मृत्यु) होती है।
- यदि मांदी का संबंध शुभ ग्रहों से या युति से हो तो अधिक उत्तम फल देता है। उदाहरण के लिए, व्यापार में समृद्धि, भौतिक सुख, भूमि लाभ, नौकर-चाकर से उत्कृष्ट सेवा, यश-मान-प्रतिष्ठा की प्राप्ति आदि की प्राप्ति होती है।
- यदि गुलिका एकादश भाव में हो तो जातक अनेक स्त्रियों के सान्निध्य में रहेगा। वह अच्छे चरित्र से रहित होगा। वह संतान सुख, अच्छी धन स्थिति आदि का आनंद लेगा और दिखने में आकर्षक होगा।
द्वादश भाव:
नीचकर्माश्रितः पापो हीनाङ्गो दुर्भगोऽलसः।
व्ययगे गुलिके जातो नीचेषु कुरुते रतिम्॥ (बृ.पा.हो.शा.)
गुलिक 12वें भाव में हो तो जातक नीच कर्मों में लिप्त, पापी, अंगदोष वाला, दुर्भाग्यशाली, आलसी और नीच लोगों में शामिल होगा।
विषयरहितवेषो दीनवाक्यः प्रवीणो निखिलधनहरः स्यान्मन्दजे रिःफयते ॥(जातक पारिजात)
यदि मान्दि द्वादशभावगत हो तो जातक विषयादि भोगों से हीन, दीनवाक्, सभी प्रकार से धन का संग्रह करने वाला होता है। बारहवें स्थान में गुलिका जातक को गलत और अन्यायपूर्ण तरीके से अपना धन हड़पने वाला बना देगा। वह परिवार को बर्बाद कर देता है।
)पुलिप्पनी ज्योतिषम)
विमर्श: यदि मान्दि द्वादशभावगत हो तो
- जातक स्वार्थी, लोभी, कंजूस और अपने स्वार्थ के लिए कोई भी नीच काम करने को तैयार रहता है।
- यदि बारहवें भाव में मांदी पाप ग्रहों के प्रभाव में हो तो जातक स्वच्छंद, आलसी, फिजूलखर्ची वाला होता है।
- मंगल के साथ मांदी की युति हो तो अग्नि भय, पैर की शल्य क्रिया, वैवाहिक सुख में कमी होती है।
- यदि बारहवें भाव में मांदी शनि की युति हो तो अनिद्रा, पैरों के रोग, शरीर में कमजोरी आदि अशुभ परिणाम होते हुए भी ऐसे जातक यात्रा संबंधी व्यवसाय या उद्योग से अधिक धन अर्जित कर सकते हैं।
- राहु के साथ मांदी का संयोग जातक को व्यसनी बनाता है और अत्यधिक व्यसन के कारण धन की हानि और हीनवृत्ति के कारण दुखी होता है।
- केतु के साथ मांदी व्यक्ति धार्मिक गतिविधियों में या समाज के कल्याण कार्यों में अच्छा खर्च करेगा।
- शुभ ग्रहों की युति हो तो में मांदी जातक को धार्मिक रूप से सक्रिय, अच्छे कर्म करने वाला, सत्संग और ज्ञान प्राप्ति में उत्साही, तीर्थ यात्रा का प्रेमी बनाता है।
संदर्भ : यह लेख को लिखने में इन इन पुस्तकों का सहारा लिया है मुहूर्त चिंतामणी / उत्तर कालामृत / फलदीपिका / जातकपारिजात / प्रश्न मार्ग / जातकादेश मार्ग / बृहद पाराशर होराशास्त्र/ Importance of Mandi in astrology/ Gulika in astrology/ Falit Jyotish Ma Upgraho Nu Yogdan
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